Read More : 4 min
भारत दुनिया के साथ कोरोनावायरस महामारी को रोकने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, लेकिन घातक वायरस के खिलाफ लड़ाई एक प्रभावी रणनीति के माध्यम से ही जीती जा सकती है। अब तक, कई देश एक वैक्सीन खोजने में व्यस्त हैं, लेकिन कितना समय लगेगा यह कहना मुश्किल है।
ऐसी स्थिति में, भारत “झुंड प्रतिरक्षा” के माध्यम से COVID-19 के खिलाफ लड़ने के लिए प्लान बी का सहारा ले सकता है, जो गेम चेंजर साबित हो सकता है। इस योजना के तहत, देश को अपनी अधिकांश आबादी में उपन्यास कोरोनावायरस के खिलाफ प्रतिरोध पैदा करना है।
झुंड प्रतिरक्षा क्या है? (Herd Immunity)
झुंड प्रतिरक्षा (इसे झुंड प्रभाव, सामुदायिक प्रतिरक्षा, जनसंख्या प्रतिरक्षा, या सामाजिक प्रतिरक्षा भी कहा जाता है) संक्रामक रोग से अप्रत्यक्ष संरक्षण का एक रूप है जो तब होता है जब आबादी का एक बड़ा प्रतिशत किसी संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षा बन जाता है, चाहे वह पिछले संक्रमण या टीकाकरण के माध्यम से हो, इस प्रकार यह उन व्यक्तियों के लिए सुरक्षा का एक उपाय है जिनकी शारीरक प्रतिरक्षा(immunity) कम है।
- इस वैज्ञानिक आइडिया के अनुसार अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है। जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं, यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते हैं।
- कुछ व्यक्ति चिकित्सा कारणों से रोग प्रतिरक्षा विकसित नहीं कर सकते हैं, जैसे कि इम्युनोडेफिशिएंसी या इम्युनोसप्रेशन, और इस समूह में, झुंड प्रतिरक्षा सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण तरीका है। टीकाकरण या पिछले संक्रमण से उबरने पर व्यक्ति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकता है।
- जिस जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा रोग-प्रतिरोधक क्षमता रखता है, ऐसे लोगों को रोग संचरण में योगदान करने की संभावना नहीं है, संक्रमण की श्रृंखलाएं बाधित होने की अधिक संभावना होती है, जो या तो बीमारी के प्रसार को रोकती है या धीमा कर देती है।
- झुंड प्रतिरक्षा (हर्ड इम्युनिटी) उनके लिए होती है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immune System) कमजोर है। इसे सरल भाषा में ऐसे समझा जा सकता है कि यह एक ऐसा प्रयोग है जिससे इम्यून सिस्टम बेहद स्ट्रोंग होगा और ये प्रयोग कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों को संक्रमित होने से बचाएगा।
- इम्यूनिटी का मतलब यह है कि व्यक्ति को संक्रमण हुआ और उसके बाद उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता ने वायरस का मुकाबला करने में सक्षम एंटी-बॉडीज तैयार कर लिया। जैसे-जैसे ज्यादा लोग इम्यून होते जाते हैं, वैसे-वैसे संक्रमण फैलने का खतरा कम होता जाता है। इससे उन लोगों को भी परोक्ष रूप से सुरक्षा मिल जाती है जो ना तो संक्रमित हुए और ना ही उस बीमारी के लिए ‘इम्यून’ हैं।
अमरीकी हार्ट एसोसिएशन के चीफ मेडिकल अफसर डॉक्टर एडुआर्डो सांचेज ने अपने ब्लॉग में इसे समझाने की कोशिश की है। वे लिखते हैं, “इंसानों के किसी झुंड (अंग्रेजी में हर्ड) के ज्यादातर लोग अगर वायरस से इम्यून हो जाएं तो झुंड के बीच मौजूद अन्य लोगों तक वायरस का पहुँचना बहुत मुश्किल होता है और एक सीमा के बाद इसका फैलाव रुक जाता है।
मगर इस प्रक्रिया में समय लगता है। साथ ही ‘हर्ड इम्यूनिटी’ के आइडिया पर बात अमूमन तब होती है जब किसी टीकाकरण प्रोग्राम की मदद से अतिसंवेदनशील लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित कर ली जाती है।” एक अनुमान के अनुसार किसी समुदाय में कोविड-19 के खिलाफ ‘हर्ड इम्यूनिटी’ तभी विकसित हो सकती है, जब तकरीबन 60 फीसद आबादी को कोरोना वायरस संक्रमित कर चुका हो और वे उससे लड़कर इम्युन हो गए हों।
ये कैसे काम करेगा…
इस प्रकिया के लिए सबसे पहले किसी संक्रामक बीमारी के फैलने के तरीके और उसके लिये जरुरी हर्ड इम्युनिटी की लिमिट का पता लगाना जरुरी है। इस लिमिट को जानने के लिए महामारी वैज्ञानिक (Epidemiologists) मापदंड यानी स्टैंडर्ड का इस्तेमाल करते है, जिसे ‘मूल प्रजनन क्षमता’ (Basic Reproductive Number-R0) कहा जाता है। यह बताता है कि किसी एक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर और कितने लोग संक्रमित हो सकते हैं। इन स्टैंडर्ड के आधार पर ही इसके प्रयोग को आगे बढ़ाया जा सकता है
इसे ऐसे समझें…
-1 से अधिक R0 होने का मतलब है कि एक व्यक्ति कई अन्य व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है।
– विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस का R0 2 से 3 के बीच हो सकता है।
-वैज्ञानिकों के अनुसार, खसरे (Measles) से पीड़ित एक व्यक्ति 12-18 अन्य व्यक्तियों को जबकि इन्फ्लूएंजा (Influenza) से पीड़ित व्यक्ति लगभग 1-4 व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है।
क्या ये भारत में संभव है?
इसके जवाब में वॉशिंगटन स्थित सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के डायरेक्टर और अमरीका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के सीनियर रिसर्च स्कॉलर डॉक्टर रामानन लक्ष्मीनारायण ने “भारत की जनसांख्यिकी इस स्थिति में सबसे बड़ी ताकत साबित हो सकती है। भारत में 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है और केवल 6 प्रतिशत लोगों की आयु 65 वर्ष से अधिक है जबकि इटली में 22 प्रतिशत और चीन में 10 प्रतिशत लोग ज्यादा जोखिम वाले आयु वर्ग के हैं, यानी 65 वर्ष से अधिक उम्र के हैं।”
“वहीं युवाओं में संक्रमण के ज्यादातर मामलों में या तो मरीज में मामूली लक्षण देखने को मिल रहे हैं या फिर उनमें कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहे। अगर इस तबके को सीमित तरीके से कोरोना वायरस से एक्सपोज किया जाए तो भारत के अस्पतालों को शायद मरीजों का उतना बोझ ना झेलना पड़े।”
“हमें स्वास्थ्य सेवाओं को तेजी से मजबूत करना होगा और साथ ही ये भी समझना होगा कि हम कोविड-19 के डर के साये में पूरा जीवन नहीं बिता सकते। इसलिए अगर लॉकडाउन खुल भी जाता है तो हमें सोशल डिस्टेन्सिंग, मास्क वगैरह का खास ध्यान रखना होगा। हर्ड इम्यूनिटी की बात करें तो अपने युवाओं के बल पर भारत अपने बुजुर्गों को बचा सकता है, पर इम्यूनिटी को हासिल करने में जोखिम क्या-क्या होंगे, ये समय ही बता सकता है।”
डॉक्टर रामानन एंटी-बॉडीज टेस्टिंग को भी जरूरी मानते हैं ताकि उन लोगों का पता लगाया जा सके जिनमें कोविड-19 से लड़ने वाली एंटीबॉडी विकसित हो चुकी हैं। वे कहते हैं, “मुझे लगता है कि लॉकडाउन ने भारत में कोविड-19 के पीक को एक महीने के लिए टाल दिया है। हमें इस समय का उपयोग यह समझने के लिए करना चाहिए कि हम अपने उद्देश्य तक कैसे पहुँचेंगे।“
हर्ड इम्यूनिटी की कोई गारंटी नहीं’
मगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के टॉप इमरजेंसी एक्सपर्ट माइक रयान का बयान कोरोना वायरस के संबंध में ‘हर्ड इम्यूनिटी’ की थ्योरी पर सवाल खड़े करता है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रेस वार्ता में माइक ने कहा कि ‘अभी पूरे यकीन के साथ ये नहीं कहा जा सकता कि जो लोग नए कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और ठीक होने के बाद उनके शरीर में जो एंटीबॉडी बनी हैं, वो उन्हें दोबारा इस वायरस के संक्रमण से बचा पाएंगी भी या नहीं।’
माइक ने कहा, “अब तक मिली सूचनाओं के अनुसार कोविड-19 से पूरी तरह ठीक हुए लोगों में से बहुत कम में ही एंटीबॉडी बन पाई हैं। अगर इन्हें प्रभावी मान भी लें तो इसके संकेत फिलहाल बहुत कम हैं कि किसी समुदाय के अधिकांश लोगों में बीमारी के बाद एंटीबॉडी विकसित होने से, बाकी बचे लोगों को हर्ड इम्यूनिटी का फायदा होगा।”
मैदान में हरा हुआ इंसान फिर से जीत सकता है लेकिन,
मन से हरा हुआ इंसान कभी नहीं जीत सकता।
Read More :